New marriage – the story of household life !! नवविवाह गृहस्थ जीवन की कथा !!

“बहु रानी लो चाय पी लो ” नौकर ने सरिता को चाय को कप पकड़ाया और वह वापस अपने काम को चल दिया ! सरिता ने चाय का घूंट लिया और खिड़की के बाहर देखा ! कुछ देर वहां स्तब्ध से खड़ी होकर डूबते हुए सूरज की ओर देखने लगी मानो जैसे उसे कुछ याद आ रहा है सामने ही शादी का पंडाल सज रहा था , उसमें फूलों से सजावट की जा रही थी हर तरफ रोशनी ही रोशनी जगमगा रही थी ! हर तरफ खुशी का माहौल था , गीत- संगीत बज रहे थे और वहां उन गीतों में पूरी तरीके से खो गई थी ! बाहर सरिता की ननंद की शादी की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थी ! यहां मनमोहक दृश्य देखते हुए सरिता की यादों के कुछ पन्ने हवा के झोंके के साथ पलटने लगे थे ! सामने यहां सब तैयारियां होते देख वह अपने विवाह के समय को याद करने लगती है ! वह सारे पल उसकी आंखों के सामने एक का एक आ रहा होता है !

यह सब खुशी का माहौल देखकर उसे भी अपना अतीत याद आ रहा था ,जो शायद अब गृहस्थ जीवन में आने के बाद कहीं गुम सा हो गया !
पहले हमारे बीच में कितना लगाव था, प्यार था लेकिन शादी के बाद का जीवन तो सिर्फ घर की सेवा और बच्चों को प्यार देने में ही व्यतीत हो रहा था! हमारे बीच का प्यार कहीं दब सा गया था वह यह सब सोच ही रही होती है कि, अचानक पीछे से आवाज आती हैं !
” बहू शाम हो गई है मेहमानों का आना जाना भी शुरू हो गया है ,देख लो कोई काम रह तो नहीं गया पंडित जी भी आ गए होंगे सारे पूजा की सामग्री भी एक बार देख लेना और हां छोटी को भी देख लेना ठीक है” सरिता कहती है “जी मां जी आप बिल्कुल भी परेशान ना होइए मैं सारा काम देख लूंगी” यह कहते हुए सरिता अपनी चाय खत्म करती है और बाकी कामों में लग जाती है! काम करते-करते व कई बार घड़ी की तरफ देखती हैं जैसे उसे बहुत बेचैनी हो रही हो वह अपनी बेटी गुड़िया को बुलाती है पूछती है “गुड़िया जरा पापा को फोन तो करना 6:00 बज गया है अभी तक घर नहीं आए ,पूछना ऑफिस का काम अभी तक हुआ नहीं क्या ? ” गुड़िया कहती है “ठीक है मम्मी ” ! तभी दरवाजे की घंटी बजती है सरिता दरवाजे की तरफ जाती है और दरवाजा खोलती है !
सामने उसका पति थका हारा ऑफिस से घर आया था ! उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थी जिम्मेदारियों का बोझ उसके कंधों पर था जो उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था और हो भी क्यों ना शैलेंद्र अपने घर का बड़ा बेटा है!
आज उसकी छोटी बहन नंदिनी की शादी है और लड़की की शादी में कितना खर्च होता है या हम भारतीय भली-भांति जानते हैं! शैलेंद्र ने भी अपने ऑफिस से लाखों का कर्जा ले रखा है ताकि वह अपनी बहन की शादी धूमधाम से कर सकें जिसका नतीजा यह है आज उसकी बहन की शादी है और आज भी वहां अपना समय आधे से ज्यादा ऑफिस में बीता चुका था ! हर भाई का सपना होता है कि वह अपनी इकलौती बहन की शादी में दिल खोल कर जीये लेकिन यहां सौभाग्य शैलेंद्र की जीवन में शायद ना था ! उसे भी चिंता थी कि उसकी बहन की शादी में किसी प्रकार की कोई भी दिक्कत ना आए जिसके लिए वह अभी तक प्रयास कर रहा है ! सरिता ने उसकी आंखों को पढ़ लिया था उसके कंधे से उसके बैग को उतारती है शैलेंद्र कुछ राहत की सांस लेता है सरिता कहती है ” सुनिए आप जाकर कपड़े बदल लीजिए मैं आपके लिए चाय भिजवाती हूं ! ” सरिता पुनः अपने कामों में लग जाती है और शैलेंद्र अपने कमरे में चला जाता है जाकर डायरी उठाता है जिसमें उसने अभी तक के शादी का सारा खर्च लिखा हुआ था और सारा हिसाब देख रहा था कि कहीं कुछ कमी तो नहीं रह गई लड़के वालों ने जितना कहा था उन सब का इंतजाम हो गया है या नहीं ! यहां सब वह देख ही रहा था कि शैलेंद्र के पिताजी कमरे में आते हैं “शैलेंद्र बेटा तुम आ गए” शैलेंद्र उठता है दरवाजा खोलता है फिर पिताजी के पैर छूकर उनका आशीर्वाद भी लेता है “बस अभी आया हु पिताजी !” पिताजी कहते हैं “बेटा हमें तुम पर गर्व है समय रहते ही तुमने घर की सारी जिम्मेदारियां अपने सर ले ली ! तुम एक अच्छे बेटे ,अच्छे भाई ,अच्छे पति और एक अच्छे पिता साबित हो! तुम्हारा व्यक्तित्व तुम्हारी सच्चाई को दर्शाता है!” शैलेंद्र की आंखें नम हो गई वह अपने पिताजी को गले से लगा लेता है पिताजी उसे प्यार करते हैं! उसकी पीठ को सहलाते हैं और हंस कर कहते हैं “चलो चलो अब तैयार हो जा देखोगे नहीं तुम्हारी बहन कैसी लग रही है “शैलेन्द्र उठता है और तैयार होने के लिए चला जाता है ! धीरे धीरे विवाह की घड़ी नजदीक आ रही थी ! नंदनी तैयार होकर अपने कमरे में बैठे थी! सरिता और शैलेंद्र उसे देखने के लिए जाते हैं नंदिनी दुल्हन के जोड़े में बहुत प्यारी गुड़िया सी लग रही थी ! शैलेंद्र , सरिता भावुक हो जाते हैं ! शैलेंद्र बड़े प्यार से अपनी बहन के सर पर हाथ फेरता है और अपने आंसुओं को छुपाने की कोशिश करता है ! सरिता काजल का काला टीका उसके गाल के पास लगाती हैं और कहती है “आज मेरी बिटिया किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही है!” छोटी दोनों को गले लगा लेती हैं और वह भी भावुक हो जाती हैं ! आखिर हो भी क्यों ना शैलेंद्र ने जिंदिगी भर उसे अपनी बहन ही नहीं एक बेटी की तरह प्यार दिया है ! सरिता ने भी उसे हमेशा प्यार किया है एक भाभी ही नहीं एक मां की तरह उसका ख्याल रखा है ! वक्त नजदीक आता है वह शुभ घड़ी भी आ जाती हैं ! दोनों नंदनी को लेकर मंडप पर पहुंचते हैं ! विवाह के पवित्र मंत्र उच्चारण शुरू हो जाते हैं हवन की अग्नि के सात फेरों के बाद जब कन्यादान के समय आता है तो सबका दिल भाव विभोर हो जाता है ! इतने साल जिसको नाजो से पाला जो सब की आंख का तारा है जिसके हंसने पर सब हंस देते थे और जिसके रोने पर दुनिया भर की सारी खुशियां ला दी जाती थी !आज वह पराई होने जा रही हैं ! सब खुश भी थे आखिर में एक अच्छे घर में जा रही हैं ! सरिता भी यहां सब देखकर बहुत खुश होती हैं कि नंदिनी का भविष्य एक अच्छे परिवार और अच्छे हाथों में जा रहा है ! उसे जब अपना समय याद आता है तो वह सोचती है कि मुझे जो परिवार मिला उसने भी मुझे बहू नहीं बल्कि बेटी की तरह प्यार दिया ! उन्हें बेटी शब्द का महत्व पता था उन्होंने कभी नंदिनी और सरिता में फर्क नहीं किया था! उसे खुशी थी कि उसे ऐसा परिवार मिला और नंदिनी को भी अपने आने वाले जीवन में ऐसी ही खुशियां मिलेंगी ! धीरे -धीरे विदाई की घड़ी भी नजदीक आ जाती है! सबकी आंखें नम थी नंदिनी विदा हो जाती है! सभी घर के लोग वापस आते हैं और अपने साधारण वेशभूषा को धारण करते हैं ! वही रोजमर्रा की जिंदगी जीने लगते हैं ! सरिता भी अपने कमरे में आती हैं अपनी विवाह की साड़ी को देखती है और वापस अलमारी में रख रही होती है, और सोचने लगती है कि हम सबकी जिंदगी वापस से उसी राह पर चलने लगेगी जिस राह पर चल रही थी ! अब तो नंदिनी भी चली गई घर की बहू होने के नाते सारी जिम्मेदारियां उसी पर हैं !तभी आवाज आती है” बहू” और वह साड़ी को अलमारी में अपनी यादों के साथ बंद कर देती हैं और वापस अपनी उसी जिंदगी में लौट आती हैं ! वही सुबह 5:30 बजे घड़ी का अलार्म बजते उठ जाना ! उसके बाद पूजा पाठ कर बच्चों को तैयार करना उनका खाना तैयार करना पति को ऑफिस भेजना घर में माता-पिता की सेवा करना और शाम होते हैं 6:00 बजने का इंतजार करना ! उसका सारा समय घर के कामों में ही बीत जाता था ! शाम को फिर खिड़की के बाहर चाय पीते हुए डूबते हुए सूरज को देख रही थी !6:00 बजता है दरवाजे की घंटी बजते हैं! दरवाजा खोलती है सामने उसका पति रोज की तरह थका हुआ ऑफिस से घर आया था दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर एक मीठी सी मुस्कान देते हैं न जाने ऐसा लगता है कि मानो जैसे वह एक दूसरे की आंखों को पढ़ लेते हैं ! रोज की तरह अपने पति का बैग उसके कंधे से उतारती है और अंदर ले जाती है ! और दोनों वापस चाय पीते हुए अपने उसी तरह से उस जीवन में गुम हो गए !

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My Name – vivaan bhagat
place city – jashpur chhattisgath india
How dare you to post my story.. this is mine okay ye apne likhi h btay ye apne copy Kari h ye story meri ma papa ko dedicated thi Sarita unhi k nam par ye story mere niblik par hai ok ise ap abhi haty